1 विद्युत आवेश : कंप्लीट नोट्स हिन्दी में || By Ajay Sir.
1 विद्युत आवेश : कंप्लीट नोट्स हिन्दी में || By Ajay Sir.
Unit 1 : स्थिर वैधुतिकी (Electrostatics)
“भौतिक विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत ऐसी वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है जिन पर आवेश स्थिर रहता है, स्थिर विद्युत विज्ञान, स्थिर वैधुतिकी (Electrostatics) कहलाती है।”
विद्युत आवेश (Electric Charge) —
जब दो भिन्न पदार्थों (वस्तुओं) को परस्पर रगड़ा जाता है तो उनमें से प्रत्येक में हल्की वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित (खींचने) करने का गुण उत्पन्न हो जाता है। इसे पदार्थ का विद्युतमय या आवेशित हो जाना कहते हैं, तथा इस घटना को आवेशन कहते हैं।
अतः “द्रव्य का वह गुण जिसके कारण वह विद्युतीय प्रभाव तथा चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न करता है या अनुभव करता है, विद्युत आवेश कहलाता है।”
अथवा
“किसी वस्तु या पदार्थ का वह गुण जिसकी उपस्थिति में वस्तुएं, अन्य वस्तुओं को आकर्षित अथवा प्रतिकर्षित करती है, विद्युत आवेश कहलाता है।”
अतः विद्युत आवेश वह गुण है जिससे युक्त वस्तु अन्य वस्तुओं पर विद्युत बल आरोपित करने लगती है। विद्युत आवेश को q से प्रदर्शित करते हैं। यह एक अदिश राशि है।
विद्युत आवेश के प्रकार (Types of Electric Charge) —
बैंजामिन फ्रेंकलिन (1750) के अनुसार आवेश दो प्रकार के होते हैं।
(i) धन आवेश या धनावेश (Positive Change)
(ii) ऋण आवेश या ऋणावेश (Negative Charge)
(i) धन आवेश या धनावेश (Positive Change) —
कांच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़ने से कांच की छड़ पर उत्पन्न आवेश को धन आवेश (धनावेश) कहते हैं।
अथवा
किसी पदार्थ पर इलेक्ट्रानों की कमी के कारण उत्पन्न आवेश को धनावेश कहते हैं।
(ii) ऋण आवेश या ऋणावेश (Negative Charge) —
आबनूस की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ने से आबनूस की छड़ पर उत्पन्न आवेश को ऋण आवेश (ऋणावेश) कहते हैं।
अथवा
किसी पदार्थ पर इलेक्ट्रानों की अधिकता के कारण उत्पन्न आवेश को ऋणावेश कहते हैं।
इसी आधार पर विद्युत आवेश अन्य दो प्रकार के होते है :
(i) सजातीय आवेश
(ii) विजातीय आवेश
(i) सजातीय आवेश —
समान प्रकृति/प्रकार के आवेश को सजातीय आवेश कहते हैं। जैसे – धन-धन आवेश या ऋण-ऋण आवेश। सजातीय आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
अथवा
जब कोई आवेशित पदार्थ किसी दूसरे आवेशित पदार्थ को प्रतिकर्षित करता है, तो उन पदार्थों पर उपस्थित आवेशों को सजातीय आवेश कहते हैं।
अथवा
वे आवेश जो एक-दूसरे प्रतिकर्षित करते हैं, सजातीय आवेश कहलाते हैं।
(ii) विजातीय आवेश —
विपरीत प्रकृति/प्रकार के आवेश को विजातीय आवेश कहते हैं। जैसे – धन-ऋण आवेश या ऋण-धन आवेश। विजातीय आवेश एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।
अथवा
जब कोई आवेशित पदार्थ किसी दूसरे आवेशित पदार्थ को आकर्षित करता है, तो उन पदार्थों पर उपस्थित आवेशों को विजातीय आवेश कहते हैं।
अथवा
वे आवेश जो एक-दूसरे आकर्षित करते हैं, सजातीय आवेश कहलाते हैं।
विद्युत आवेश का इलेक्ट्रॉन सिद्धांत : इलेक्ट्रॉनों की अधिकता अथवा कमी के कारण ऋण तथा धन विद्युत आवेश (Election Theory of Electric Charge : Negative and Positive Electric Change due to Excess or Deficiency of Electron) —
जैसा कि हम पिछली कक्षाओं में पढ़ चुके हैं, कि प्रत्येक पदार्थ अति सूक्ष्म कणों से मिलकर बना है जिन्हें परमाणु कहते हैं। परमाणु में इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन व न्यूट्रॉन होते हैं। परमाणु के बीच में एक भारी भाग होता है जिसमे परमाणु का समस्त धनावेश तथा लगभग समस्त द्रव्यमान सकेंद्रित (निहित) रहता है जिसे नाभिक कहते हैं। नाभिक में प्रोटॉन व न्यूट्रॉन पाए जाते हैं। प्रोटॉन धनावेशित तथा न्यूट्रॉन उदासीन होते हैं। इस प्रकार परमाणु का नाभिक धनावेशित होता है। नाभिक के चारों ओर की कक्षाओं में ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन परिक्रमण करते रहते हैं। नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की कुल संख्या उसके चारों ओर परिक्रमण कर रहे इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या के बराबर होती है। अतः नाभिक पर उपस्थित कुल धनावेश उसके चारों और परिक्रमण कर रहे इलेक्ट्रॉनों के कुल ऋणावेश के बराबर होता है, जिससे परमाणु पूर्ण रूप से उदासीन होता है।
परमाणु में नाभिक के निकटतम कक्षाओं में परिक्रमण (चक्कर) कर रहे इलेक्ट्रॉन नाभिक के प्रबल आकर्षण बल के कारण नाभिक से दृढ़तापूर्ण बंधे (आबद्ध) रहते हैं, जबकि बाह्यतम कक्षाओं में परिक्रमण कर रहे इलेक्ट्रोनों पर नाभिक का आकर्षण बल कम होने के कारण इलेक्ट्रॉन नाभिक से अपेक्षाकृत कम दृढ़ता से बंधे (आबद्ध) होते हैं।
जब किसी एक वस्तु को किसी दूसरी वस्तु से रगड़ा जाता है तो किसी एक वस्तु से कम आबद्ध इलेक्ट्रॉन दूसरी वस्तु पर स्थानांतरित हो जाते हैं। जिस वस्तु से इलेक्ट्रॉन स्थानांतरित होते हैं उस वस्तु में इलेक्ट्रॉनों की कमी हो जाती है। इलेक्ट्रॉनों की कमी के कारण वस्तु धनावेशित हो जाती है। जबकि जिस वस्तु पर इलेक्ट्रॉन स्थानांतरित होते हैं उस पर इलेक्ट्रॉनों की अधिकता हो जाती है। इलेक्ट्रॉनों की अधिकता के कारण वस्तु ऋणावेशित हो जाती है।विद्युत आवेश का मात्रक : कूलॉम (Unit of Charge : Coulomb) —
विद्युत आवेश का मात्रक एम्पियर- सेकंड या कूलॉम होता है। इसे C से प्रदर्शित करते हैं। कूलॉम की परिभाषा एम्पियर के आधार पर ही दी जाती है। चूंकि किसी चालक में से विद्युत आवेश के प्रवाह की दर को ही विद्युत धारा कहते हैं।
अतः विद्युत धारा=विद्युत आवेश /समय⇒$i=Q/t$
विद्युत आवेश=विद्युत धारा×समय ⇒ $Q= it$
एम्पियर की परिभाषा —
“यदि किसी चालक में से 1 एम्पियर की धारा 1 सेकंड तक प्रवाहित हो, तो उस चालक में से गुजरने वाले आवेश की मात्रा 1 कूलॉम होती है।” इस प्रकार —
1 कूलॉम = 1 एम्पियर- सेकंड$1 C=1 A–s$
तथा 1 फैराडे = 96500 कूलॉम
विद्युत आवेश की विमा —
धारा तथा समय के गुणनफल को आवेश कहते हैं।
विद्युत आवेश= विद्युत धारा× समय$q = it$
विद्युत आवेश की विमा $= [AT]$ या $[M^0 L^0 A T]$
विद्युत आवेश का संरक्षण — विद्युत आवेश संरक्षण का नियम/सिद्धांत (Conservation of Electric Charge) —
जब दो वस्तुओं को परस्पर रगड़ा जाता है तो दोनों वस्तुओं पर एक साथ विपरीत विद्युत आवेश उत्पन्न होते हैं। एक वस्तु पर धन आवेश उत्पन्न होता है तथा दूसरी वस्तु पर ऋण आवेश उत्पन्न होता है। मापने पर यह देखा गया है कि इन विद्युत आवेशों की मात्राएं एक-दूसरे के ठीक बराबर होती हैं। जब कांच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़ते हैं तो जितना धन आवेश कांच की छड़ पर उतना उत्पन्न होता है, ठीक उतना ही ऋण आवेश रेशम के कपड़े पर उत्पन्न हो जाता है। इसी प्रकार जब आबनूस की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ते हैं तो जितना ऋण आवेश आबनूस की छड़ पर उत्पन्न होता है, ठीक उतना ही धन आवेश बिल्ली की खाल पर ऋण आवेश उत्पन्न हो जाता है।
अत दोनों वस्तुओं पर उत्पन्न विद्युत आवेश की कुल मात्रा शून्य (0) रहती है। इन बातों से स्पष्ट है कि “आवेश न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। इसे केवल एक वस्तु से दूसरी वस्तु पर स्थानांतरित किया जा सकता है। यह ‘विद्युत आवेश-संरक्षण का नियम या सिद्धांत’ कहलाता है।”
विद्युत आवेश की क्वांटम प्रकृति : मूल आवेश (Quantum Nature of Electric Charge : Fundamental Charge) —
विद्युत आवेश को अनिश्चित रूप से विभाजित नहीं किया जा सकता है। प्रयोगों द्वारा यह सत्यापित हो चुका है कि प्रकृति में प्रत्येक वस्तु पर आवेश सदैव एक निश्चित न्यूनतम मान के पूर्ण गुणज के रूप में होता है। इस न्यूनतम आवेश को मूल आवेश (e) कहते हैं। आवेश के इस गुण को आवेश का क्वांटीकरण या क्वांटमीकरण अथवा परमाणुकता कहते हैं। अतः किसी वस्तु पर आवेश —
$q= ± ne$
जहां n = 1, 2, 3, …. तथा $e=1.6×10^{-19}$ कूलॉम
अतः आवेशित वस्तु चाहे छोटी हो या बड़ी उस पर आवेश सदैव e के पूर्ण गुणज के रूप में होता है। जैसे — $±e,±2e,±3e,±4e,±5e,….$
कुछ प्राकृतिक मूल कणों के आवेश इस प्रकार हैं —
इलेक्ट्रान का आवेश $= - e$
प्रोटान का आवेश $= + e$
$α-$कण पर आवेश $= +2e$
विद्युत आवेश के मूल गुण :
(i) आकर्षण तथा प्रतिकर्षण
(ii) आवेशों की योज्यता
(iii) आवेश संरक्षण का नियम
(iv) आवेशों का क्वांटमीकरण
(i) आकर्षण तथा प्रतिकर्षण —
समान प्रकृति के (सजातीय) आवेशों के मध्य प्रतिकर्षण तथा असमान प्रकृति के (विजातीय) आवेशों के मध्य आकर्षण होता है।
(ii) आवेशों की योज्यता —
किसी निकाय का कुल वैद्य आवेश, उसके विभिन्न अवयवी कणों पर उपस्थित भिन्न भिन्न आवेशों के बीजगणितीय योग के बराबर होता है। यदि कोई निकाय n कणों से मिलकर बना है जिस पर आवेश क्रमशः $+q1, +q2, –q3, –q4, …. qn$ हों तब निकाय पर कुल आवेश — $Q= q_1+ q_2-q_3- q_4+⋯+ q_n$
आवेश संरक्षण के नियमानुसार आवेश न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। इसे केवल एक वस्तु से दूसरी वस्तु पर स्थानांतरित किया जा सकता है।(iii) आवेश संरक्षण का नियम —
आवेश संरक्षण के नियमानुसार, आवेश न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। इसे केवल एक वस्तु से दूसरी वस्तु पर स्थानांतरित किया जा सकता है।अतः किसी विलगित (isolated system) निकाय में कुल आवेश नियत रहता है
(iv) आवेशों का क्वांटमीकरण —
प्रकृति में आवेश सदैव एक निश्चित न्यूनतम मान के पूर्ण गुणज के रूप में उत्पन्न होता है। इसे आवेश का क्वांटमीकरण अथवा परमाणुकता कहते हैं। इस न्यूनतम आवेश को मूल आवेश e कहते हैं।
$q= ± ne$
जहां n = 1, 2, 3, …. तथा $e=1.6×10^{-19}$ कूलॉम
कूलॉम का नियम (Coulamb’s Law) —
दो आवेश एक-दूसरे को या तो आकर्षित करते हैं या तो प्रतिकर्षित करते हैं। अतः आवेशों के बीच एक बल कार्य करता है जिसे ‘विद्युत बल’ कहते हैं। सन 1785 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक कूलॉम ने एक नियम प्रस्तुत किया जिसे ‘कूलॉम का नियम’ कहते हैं।
इस नियम के अनुसार — “दो स्थिर बिंदु आवेशों के बीच लगने वाला आकर्षण बल या प्रतिकर्षण बल दोनों आवेशों की मात्राओं के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युतक्रमानुपाती होता है। यह बल दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश होता है।”
इस प्रकार, यदि दो बिंदु आवेश $q_1$ व $q_2$ एक-दूसरे से r दूरी पर स्थित हों, तो उनके बीच लगने वाला विद्युत बल —
$F=1/{4πϵ_0} {q_1 q_2}/r^2$ न्यूटन
$F={9×10^9}{q_1 q_2}/r^2$
अतः $k=1/{4πϵ_0 }=9×10^9$ न्यूटन-मीटर2/कूलॉम2
$ϵ_0$ (एप्साइलन जीरो) को निर्वात की विद्युतशीलता कहते हैं।
यदि दो आवेशों के बीच वायु या निर्वात के अलावा कोई और पराविद्युत पदार्थ जैसे — कांच, जल, मोम, कागज, अभ्रक आदि हो तो बिंदु आवेशों के बीच लगने वाला बल —
कूलॉम की परिभाषा —
अतः “1 कूलॉम आवेश वह है जो अपने से 1 मीटर की दूरी पर निर्वात अथवा वायु में रखे इसी परिमाण के किसी अन्य सजातीय आवेश को $9 × 10^9$ न्यूटन के बल से प्रतिकर्षित करता है।”
$ϵ_0$ का आंकिक मान, मात्रक तथा विमा—
चूंकि हम जानते हैं कि$ϵ_0=1/{4π×9×10^9}$ न्यूटन-मीटर2/कूलॉम
$= 1/{4×3.14×9×10^9}$
$=1/{4×28.56×10^9}$
$=1/{113.04×10^9}$
$=100/{11304×10^9}$
$=100000/{11304×10^12}$
$=100000/{11304×10^-12}$
$={8.85×10^{-12}}$ कूलॉम2∕(न्यूटन-मीटर2 )
निर्वात की विद्युतशीलता $ϵ_0$ की विमा —
$$ϵ_0=1/{4πϵ_0} {q_1 q_2}/{Fr^2}$$ अतः $ϵ_0$ की विमा $={[AT] [AT]}/{[MLT^{-2} ] [L^2 ]$
$$={[M^{-1} L^{-3} T^4 A^2 ] }$$
“किसी पराविद्युत की विद्युतशीलता $(ϵ)$ तथा निर्वात की विद्युतशीलता के अनुपात को उस पराविद्युत माध्यम का परावैधुतांक कहते हैं।”
$$K= ϵ/ϵ_0$$कूलॉम के नियम का सदिश स्वरूप
माना दो बिन्दु आवेश के कारण $q_1$ व $q_2$ हैं। जिनके मूल बिन्दु के सापेक्ष स्थिति सदिश क्रमशः ${r_1} ⃗ $ व ${r_2 } ⃗ $ हैं। चित्र से, $q_1$ से $q_2$ $(BA)$ की ओर सदिश$${AB} ⃗={OB} ⃗-{OA} ⃗ $$
$$|{r_12} ⃗ |=|{r_2} ⃗-{r_1} ⃗ | $$
तथा $q_2$ से $q_1$ की ओर सदिश
$${BA} ⃗={OA} ⃗-{OB} ⃗ $$
$$|{r_21} ⃗ |=|{r_1} ⃗-{r_2} ⃗ | $$
कूलॉम के नियम से, आवेश $q_1$ पर $q_2$ के लगने वाला विद्युत बल हो ${F_12} ⃗ $ तो —
$${F_12} ⃗=1/{4πϵ_0} {{q_1 q_2}/{|{ r_21} ⃗ |^2}} {r_21} ̂$$
यहां ${r_21} ̂$ आवेश $q_2$ से $q_1$ की ओर इंगित करने वाला एकांक सदिश है, जहां — $${r_21} ̂={{r_21} ⃗}/{|r_21|}$$
$$ ∴ {F_12} ⃗=1/{4πϵ_0} {{q_1 q_2}/{{|{r_21} ⃗}|^2}} {{r_21} ⃗}/{|r_21|} $$
इसी प्रकार कूलॉम के नियम से, आवेश $q_2$ पर $q_1$ के लगने वाला विद्युत बल हो ${F_21} ⃗ $ तो —
$${F_21} ⃗=1/{4πϵ_0} {q_1 q_2}/{|{r_12} ⃗ |^2} {r_12} ̂ $$
यहां ${r_12} ̂$ आवेश $q_1$ से $q_2$ की ओर इंगित करने वाला एकांक सदिश है, जहां —
$$∴ {F_21} ⃗=1/{4πϵ_0} {{q_1 q_2}/{|{r_12} ⃗ |^2}} {{r_12} ⃗}/{|r_12|} $$
${F_21} ⃗=1/{4πϵ_0} {{q_1 q_2}/{|{r_2} ⃗-{r_1} ⃗ |^3}} ({r_2 } ⃗-{r_1} ⃗ ),$ समी(4)
$${F_21} ⃗={-1}/{4πϵ_0} {{q_1 q_2}/{|{r_12} ⃗ |^3}} ({r_1} ⃗-{r_2} ⃗ ) $$
या $-{F_21} ⃗=1/{4πϵ_0} {q_1 q_2}/{|{r_2} ⃗-{r_1} ⃗ |^3} ({r_1} ⃗-{r_2} ⃗ ),$ समी(5)
$$∵ {r_1} ⃗-{r_2} ⃗=-({r_2} ⃗ {r_1} ⃗ )$$
बहुल आवेशों के बीच बल : अध्यारोपण का सिद्धांत —
यदि किसी निकाय में अनेक आवेश हो तो उनमें से किसी एक आवेश पर कई अन्य आवेशों के कारण बल, उस पर लगे सभी बलों के सदिश योग के बराबर होता है। इसे अध्यारोपण का सिद्धांत कहते हैं। किसी एक आवेश पर लगाया बल अन्य आवेशों की उपस्थिति के कारण प्रभावित नहीं होता है।
$${F_1 } ⃗={F_12 } ⃗+{F_13 } ⃗+⋯+{F_n } ⃗ $$बहुल आवेशों के बीच बल —
माना n आवेशों के एक निकाय में $q_1, q_2, q_3,…, q_n$ आवेश उपस्थित हैं। माना $q_1$ आवेश पर विद्युत बल ज्ञात करना है। $q_2,q_3,…,q_n$ के $q_1$ के सापेक्ष स्थिति सदिश क्रमशः ${r_12 } ⃗,{r_13 } ⃗,{r_1n } ⃗ $ हैं। तब अध्यारोपण के सिद्धांत से,
आवेश $q_1$ पर कुल बल —
आवेश $q_2$ के कारण $q_1$ पर विद्युत बल —
$${F_12 } ⃗=1/{4πϵ_0 } {q_1 q_2}/|{r_12 } ⃗ |^2 {r_12 } ̂ ,{2} $$
आवेश $q_3$ के कारण $q_1$ पर विद्युत बल —
$${F_13 } ⃗=1/{4πϵ_0 } {q_1 q_3}/{|{r_13 } ⃗ |^2} {r_13 } ̂, (3) $$
आवेश $q_n$ के कारण $q_1$ पर विद्युत बल —
$${F_1n } ⃗=1/{4πϵ_0 } {q_1 q_n}/{|{r_1n } ⃗ |^2} {r_1n } ̂ ,(4)$$
समी (2), (3), (4) का मान समी (1) में रखने पर —
विद्युत बल की गुरुत्वाकर्षण बल से तुलना —
गुरुत्वाकर्षण बल का नियम —
न्यूटन के सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण बल के नियम से, किन्ही दो कणों के बीच कार्य करने वाले गुरुत्वाकर्षण के लिए एक व्यापक नियम प्रतिपादित किया। जिसे न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम कहते हैं।
इस नियम के अनुसार, किन्हीं दो कणों के बीच लगने वाला आकर्षण बल (गुरुत्वाकर्षण बल) उनके द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। इस बल की दिशा दोनों कणों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश होती है। अर्थात
$$F∝{m_1 m_2}/r^2$$विद्युत बल का नियम —
विद्युत बल से सम्बन्धित कूलॉम के नियमानुसार दो स्थिर बिन्दु आवेशों के बीच लगने वाला आकर्षण बल दोनों आवेशों की मात्राओं के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। इस बल की दिशा दोनों कणों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश होती है। अर्थात
$$F∝{q_1 q_2}/r^2$$विद्युत बल की गुरुत्वाकर्षण बल से तुलना —
(i) दोनों प्रकार के बल परिमाणों के गुणनफल एवं व्युतक्रम वर्ग के नियम का पालन करते हैं
(ii) दोनों प्रकार के बल निर्वात में भी क्रियाशील होते हैं।
(iii) विद्युत बल में आकर्षण या प्रतिकर्षण हो सकता है जबकि गुरुत्वाकर्षण बल में केवल आकर्षण होता है।
(iii) विद्युत बल दोनों आवेशों के बीच के माध्यम पर निर्भर करता है जबकि गुरुत्वाकर्षण बल द्रव्यमानों के बीच के माध्यम पर निर्भर नहीं करता है।
(iv) विद्युत बल, गुरुत्वाकर्षण बल की तुलना में अधिक प्रबल होते हैं। जैसे दो प्रोटानों के बीच यह $10^36$ गुना तथा दो इलेक्ट्रॉनों के बीच यह $10^43$ गुना तक होता है।
कूलॉम के नियम का महत्त्व —
कूलॉम का नियम बहुत बड़ी दूरियों से लेकर बहुत छोटी दूरियों (नाभिकीय दूरियों या परमाणवीय दूरियों) के लिए भी सत्य होता है। यह केवल आवेशित वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले बलों को ही नहीं बताता अपितु यह नियम परमाणु में इलेक्ट्रॉनों को नाभिक से बांधने वाले बल को भी बताता है। इस प्रकार कूलॉम के नियम से उन बलों की व्याख्या करने में सहायता मिलती है जिनसे —
(i) किसी परमाणु के इलेक्ट्रॉन उसके नाभिक से बंधकर किसी परमाणु की रचना करते हैं।
(ii) दो या दो से अधिक परमाणु परस्पर संयुक्त होकर एक अणु की रचना करते हैं।
(iii) अनेक परमाणु अथवा अणु परस्पर संयुक्त होकर ठोस अथवा द्रवों की रचना करते हैं।
विद्युत क्षेत्र : विद्युत बल रेखाएं
विद्युत क्षेत्र —
“किसी विद्युत आवेश अथवा आवेश-समूह के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें कोई अन्य आवेश आकर्षण बल अथवा प्रतिकर्षण बल का अनुभव करता है, विद्युत क्षेत्र या विद्युत बल क्षेत्र कहलाता है।”
विद्युत बल रेखाएं —
“विद्युत बल रेखा, विद्युत क्षेत्र में खीचा गया वह काल्पनिक वक्र है जिस पर स्वतंत्र व प्रथक्कृत एकांक धन आवेश चलता है। विद्युत बल रेखा के किसी भी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर स्थित धन आवेश पर लगने वाले बल की दिशा को प्रदर्शित करती है।”
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता —
विद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु पर रखे एकांक धन परीक्षण आवेश पर लगने वाले वैद्युत बल को उस बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता कहते हैं। अथवा विद्युत क्षेत्र में वैद्युत बल तथा धन परीक्षण आवेश के अनुपात को विद्युत क्षेत्र की तीव्रता कहते हैं। इसे $E ⃗ $ से प्रदर्शित करते हैं।
यदि विद्युत क्षेत्र में रखे एकांक धन परीक्षण आवेश $q_0$ पर लगने वाला वैद्युत बल $F ⃗ $ हो, तो उस बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता —
$${E ⃗}={F ⃗}/{q_0} $$विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक —
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता $E ⃗ $ का मात्रक ‘न्यूटन/कूलॉम’ होता है।विद्युत क्षेत्र की तीव्रता E की विमा —
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता E की विमा=बल की विमा/आवेश की विमा
$$={[MLT^{-2}]}/[AT] $$
$$=[MLT^{-3} A^{-1}]$$
किसी एकल बिन्दु आवेश के कारण विद्युत क्षेत्र की तीव्रता —
माना $+q$ आवेश $K$ परावैधुतांक वाले माध्यम में बिन्दु O पर रखा है। O से r दूरी पर एक बिन्दु P है जिस पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है। अब माना बिन्दु P पर लगने वाला विद्युत बल —
$$F=1/{4πϵ_0 K} {qq_0}/r^2$$अतः बिन्दु P पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता — $${E ⃗}={F ⃗}/{q_0}$$
$$={1/{4πϵ_0 K} {qq_0}/r^2}/{q_0}$$
$$=1/{4πϵ_0 K} {qq_0}/{r^2 q_0}$$
$$=1/{4πϵ_0 K} q/r^2$$ निर्वात अथवा वायु के लिए K = 1 ,
विद्युत द्विध्रुव तथा विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण
विद्युत द्विध्रुव (Electric Dipole) —
दो समान परिमाण एवं विपरीत प्रकृति के बिंदु आवेशों से बना निकाय, जिनके बीच की दूरी अत्यंत अल्प हो, विद्युत द्विध्रुव कहलाता है।
अथवा
दो समान परिमाण एवं विपरीत प्रकृति के बिंदु आवेशों के अत्यंत अल्प दूरी पर रखे होने से बना निकाय, विद्युत द्विध्रुव कहलाता है।
अथवा
दो समान परिमाण एवं विपरीत प्रकृति के बिंदु आवेशों, जिनके बीच की दूरी अत्यंत अल्प हो, से बने निकाय को विद्युत द्विध्रुव कहते हैं।
अथवा
दो समान परिमाण एवं विपरीत प्रकृति के बिंदु आवेशों से बने निकाय को विद्युत द्विध्रुव कहते हैं जबकि उनके बीच की दूरी अत्यंत अल्प हो।
जैसे – HCl, H2O, NH3, CH4, CO2 आदि।
विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण (Electric Dipole Moment) —
किसी विद्युत द्विध्रुव के सामर्थ्य को जिस राशि द्वारा व्यक्त किया जाता है, उसे विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण कहते हैं।
“किसी विद्युत द्विध्रुव के एक आवेश के परिमाण तथा आवेशों के बीच की दूरी के गुणनफल को विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण कहते हैं। इसे $p ⃗ $ से प्रदर्शित किया जाता है।”
माना विद्युत द्विध्रुव के आवेश $-q$ व $+q$ कूलॉम हैं तथा उनके बीच की अल्प दूरी $2l$ मीटर है। तब विद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण —
$$p= q×2l=2ql $$अर्थात किसी विद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण उसके किसी एक आवेश के परिमाण तथा आवेशों के बीच की दूरी के गुणनफल के बराबर होता है।
विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण एक सदिश राशि होती है। जिसकी दिशा विद्युत द्विध्रुव की अक्ष के अनुदिश ऋण आवेश से धन आवेश की ओर होती है।
विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण का मात्रक एवं विमा (Unit and Dimensions of Electric Dipole Moment) —
इसका मात्रक कूलॉम-मीटर होता है तथा विमा $[L T A]$ होती है।
विद्युत द्विध्रुव के कारण उत्पन्न विद्युत क्षेत्र की तीव्रता (Intensity of Electric Field due to an Electric Dipole) —
विद्युत द्विध्रुव के कारण उत्पन्न विद्युत क्षेत्र की तीव्रता की दो विशेष स्थितियां होती हैं।
(i) अक्षीय (अनुधैर्य) स्थित में
(ii) निरक्षीय (अनुप्रस्थ) स्थित में
विद्युत द्विध्रुव की अक्षीय (अनुधैर्य) स्थित में किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक —
माना एक विद्युत द्विध्रुव $AB$ है, जो $–q$ तथा $+q$ कूलॉम के आवेशों से बना है, जिनके बीच की अत्यंत अल्प दूरी $2l$ मीटर है। विद्युत द्विध्रुव $AB$ किसी ऐसे माध्यम में रखा है जिसका परावैधुतांक $K$ है। विद्युत द्विध्रुव के मध्य बिन्दु O से $r$ मीटर की दूरी पर इसकी अक्षीय स्थित में एक बिंदु P स्थित है, जिस पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है।
$+q$ आवेश से बिंदु P की दूरी $(BP)=( r – l )$$-q$ आवेश से बिंदु P की दूरी $(AP) = ( r + l )$
$+q$ आवेश के कारण बिंदु P पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता —
$$E_1=1/{4πϵ_0 K} q/(BP)^2$$
$q$ आवेश के कारण बिंदु P पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता —
$$E_2=1/{4πϵ_0 K} {-q}/(PA)^2$$
बिन्दु P पर तीव्रताएं $E1$ तथा $E2$ एक ही रेखा के अनुदिश विपरीत दिशा में हैं। अतः बिन्दु P पर परिणामी तीव्रता —
$$E= E_1- E_2$$$$=1/{4πϵ_0 K} [q/(r-l)^2]- 1/{4πϵ_0 K} [q/(r+l)^2 ]$$
$$=q/{4πϵ_0 K} [1/(r-l)^2 -1/(r+l)^2] $$
$$=q/{4πϵ_0 K} [{(r+l)^2-(r-l)^2}/(r^2- l^2)^2] $$
$$=q/{4πϵ_0 K} [{r^2+l^2+2rl-(r^2+l^2-2rl)}/{r^2-l^2}^2] $$
$$=q/{4πϵ_0 K} [{r^2+l^2+2rl-r^2-l^2+2rl}/(r^2-l^2)^2] $$
$$=q/{4πϵ_0 K} {4rl}/(r^2-l^2)^2 $$
$$=1/{4πϵ_0 K} {2(q×2l) r}/(r^2-l^2)^2 $$
चूंकि विद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण $p= q×2l$
$$=1/{4πϵ_0 K} {2pr}/(r^2-l^2)^2$$ चूंकि $l< <
$$E=1/{4πϵ_0 K} {2p}/r^3$$
निर्वात अथवा वायु के लिए K = 1 ,
इस स्थिति में विद्युत क्षेत्र $E$ की दिशा विद्युत द्विध्रुव की अक्ष के अनुदिश ऋण-आवेश से धन-आवेश की ओर होती है।
विद्युत द्विध्रुव की निरक्षीय (अनुप्रस्थ) स्थित में किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक —
माना एक विद्युत द्विध्रुव $AB$ है, जो $–q$ तथा $+q$ कूलॉम के आवेशों से बना है, जिनके बीच की अत्यंत अल्प दूरी $2l$ मीटर है। विद्युत द्विध्रुव $AB$ किसी ऐसे माध्यम में रखा है जिसका परावैधुतांक $K$ है। विद्युत द्विध्रुव के मध्य बिन्दु O से $r$ मीटर की दूरी पर इसकी निरक्षीय स्थित में एक बिंदु P स्थित है, जिस पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है।
$+q$ आवेश से बिंदु P की दूरी $BP=√{r^2+l^2}$$-q$ आवेश से बिंदु P की दूरी $AP=√{r^2+l^2}$
$+q$ आवेश के कारण बिंदु P पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता —
$$E_1=1/{4πϵ_0 K} q/{(BP)^2} $$
$-q$ आवेश के कारण बिंदु P पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता —
$$E_2=1/{4πϵ_0 K} {-q}/{(PA)^2} $$
चूंकि $E_1$ तथा $E_2$ के परिमाण बराबर हैं परंतु दिशाएं भिन्न हैं। $E_1$ तथा $E_2$ को लम्बवत व समांतर घटकों में वियोजित करने पर $E_1 sinθ$ व $E_2 sinθ$ बराबर व विपरीत होने के कारण परस्पर निरस्त हो जायेंगे। $E_1 cosθ$ व $E_2 cosθ$ एक ही दिशा में होने के कारण जुड़ जायेंगे।
अतः बिंदु P पर विद्युत क्षेत्र की परिणामी तीव्रता — $$E= E_1 cosθ+E_2 cosθ $$$$E= 1/{4πϵ_0 K} q/{(r^2+l^2)} cosθ+1/{4πϵ_0 K} q/{(r^2+l^2 )} cosθ $$
$$E= 1/{4πϵ_0 K} q/{(r^2+l^2)} [cosθ+cosθ] $$
$$E= 1/{4πϵ_0 K} q/{(r^2+l^2)} [2cosθ] $$
चित्र में, $cosθ=$आधार/कर्ण $={OB}/{PB}=l/√{(r^2+l)^2}=l/{(r^2+ l^2)}^{1/2}$ $$E= 1/{4πϵ_0 K} q/{(r^2+l^2)} {2l}/(r^2+ l^2)^{1/2}$$
$$E= 1/{4πϵ_0 K} {2ql}/(r^2+ l^2)^{3/2} $$
चूंकि विद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण $p= q×2l$
$$E= 1/{4πϵ_0 K} p/(r^2+ l^2)^{3/2} $$
चूंकि $l< <
$$E= 1/{4πϵ_0 K} {p/r^3} $$
निर्वात अथवा वायु के लिए K = 1 , अतः -
$$E= 1/{4πϵ_0} {p/r^3} $$ न्यूटन∕कूलॉम
इस स्थिति में विद्युत क्षेत्र $E$ की दिशा विद्युत द्विध्रुव की अक्ष के समांतर धन-आवेश से ऋण-आवेश की ओर होती है।
एकसमान बाह्य विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत द्विध्रुव पर लगने वाले बलयुग्म के आघूर्ण का व्यंजक —
यदि किसी विद्युत द्विध्रुव को एकसमान बाह्य विद्युत क्षेत्र में रखा जाए तो विद्युत द्विध्रुव पर एक बल-युग्म कार्य करने लगता है। यह बल-युग्म विद्युत द्विध्रुव को विद्युत क्षेत्र की दिशा में संरेखित (घुमाने) का प्रयास करता है। इसे ‘प्रत्यानयन बल-युग्म’ कहते हैं।
माना एक विद्युत द्विध्रुव $AB$ है, जो $–q$ तथा $+q$ कूलॉम के आवेशों से बना है, जिनके बीच की अत्यंत अल्प दूरी $2l$ मीटर है। एकसमान बाह्य विद्युत क्षेत्र की दिशा से $θ$ कोण बनाते हुए रखा है। इसके सिरों $–q$ तथा $+q$ पर समान व विपरीत बल $F = -qE$ तथा $F = +qE$ बल-युग्म बनाते हैं जो विद्युत द्विध्रुव को विद्युत क्षेत्र E की दिशा में लाने का प्रयास करता है।
इस प्रत्यानयन बल-युग्म का आघूर्ण —$τ= F× BC$, समी(1)
$$sinθ={BC}/{2l}$$
$$BC=2lsinθ$$
$$τ= qE× 2lsinθ $$
$$τ=(q×2l)× Esinθ$$
चूंकि विद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण $p= q×2l$
वेक्टर रूप में — $τ ⃗= $
विशेष स्थितियां —
यदि विद्युत द्विध्रुव विद्युत क्षेत्र $E$ के समांतर रखा है तो - $θ=0^0$ यानी $sin0^0=0^$ तो -$$τ= pEsin0^0$$
$$τ_min=0$$
यदि विद्युत द्विध्रुव विद्युत क्षेत्र $E$ के लम्बवत रखा है तो - $θ=90^0$ यानी $sin90^0=1$ तो -
$$τ= pEsin90^0$$
$$τ_{max}= pE$$
यदि विद्युत द्विध्रुव विद्युत क्षेत्र $E$ के समांतर रखा है तो $θ=180^0$ यानी $sin180^0=1$ तो -
$$τ= pEsin180^0$$
$$τ_{min}=0$$
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